........जीवन की लहरेँ........
जीवन है एक दरिया, धारा के संग बहते रहते
पल पल रास्ता बदलती लहरोँ में खुद ही हो जाते गुम...
आंखों में नमी होठों पर हँसी को सजाने वाले
मस्ती से चलते जाते दूर भागते उन के गम...
मंजिल की और चलते रहना मुसाफिर का काम
हर मोड़ को देख कर उदास क्यों हो जाते तुम...
छोड़ दिया जिन रास्तो को लहरों ने सदियो पहले
फिर क्यों उन रास्तो पर नजरेँ है हो जाती गुम...
देख किनारे पर बैठे लोगो को हर रोज़
कही फिर यादो में खो न जाना तुम....
पड़े है रस्ते में तेरे पत्थर बहुत
मन कमजोर ना कहीँ कर लेना तुम....
जीवन है एक दरिया.........
Monday, July 14, 2008
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4 comments:
bhut badhiya. likhate rhe.
aap apna word verification hata le taki humko tipani dene me aasani ho.
रजनी जी, बहुत खूब. खुबसूरत रचना. लिखते रहिये. शुभकामनाएं.
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यहाँ भी पधारें;
उल्टा तीर
Badhiya hai. Likhte rahiye.
जीवन है एक दरिया......... सुन्दर कविता ।
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