Monday, September 15, 2008

कोहराम


अचानक मच गई चीख पुकार,
अचानक तेज धमाके के बाद,
चारों तरफ मच गया हाहाकार,
ढूंढ रहा अपनों को कोई,
तो कोई खो चुका था संसार,
चैनलों ने जब आई खबर,
घरों में मच गया कोहराम,
फिर मिला नेताओं को मुद्दा,
आतंक पर लगेगा विराम,
जनता फिर टकटकी लगाए,
देख रही है वो उनका प्रोगाम,
आखिर कब तक बहेगा रक्त,
कब लगेगा बमों पर विराम,
अहमदाबाद ओर बंगलुरू के,
बाद दिल्ली का आया नाम,

नयन


वो झील सी गहरे नयन तेरे,
आज क्यो बोझिल से लगे मुझे,
होती थी हरदम जिनमें मस्ती भरी,
आज क्यों उदास से दिखे मुझे,
हंसता था जिनमें हर पल हमेशा,
आज क्यों रोए-रोए से लगे मुझे,
तालाश रहती थी जिनको हरदम,
आज क्यों खोए-खोए से लगे मुझे,
सजे रहते थे उनमें सपने सलोने,
आज क्यों जगे-जगे लगे मुझे,
निभय रहते थे हर पल वो फिर,
आज क्यों डरे डरे से लगे मुझे,

Monday, September 8, 2008

गुलाब


गुलाब के फूलों से पूछा मैने,
रूप है तेरा कितना सुंदर,
सबको लगता कितना प्यारा,
बच्चे, बुढे सब को तू भाता,
भगवान से भी तेरा नाता,
फिर तू जल्दी क्यों मुरझा जाता,
तेरी लाली चंद दिन को रहती,
बोला फूल तुम क्या जानों,
मैं तो सबको देता मुस्कान,
पर मेरा दर्द न जाने कोई,
मैं खिलता तो महकती बगिया,
सुंदरता मेरी बन जाती अभिशाप,
खिला देख सब आते पास,
पास रखने को तोड़ ले जाता साथ,
टूट कर मैं अपनी डाली से,
कैसे रह पाऊ हमेशा ताजा,
जब खत्म हो जाती मेरी सुंदरता,
महक भी हो जाती खत्म,
लोग फैंक देते है मुझको,
इस लिए मैं हो जाता उदास,

Sunday, September 7, 2008

ख्याल

नाम लिया जब तेरा किसी ने,
लम्हों का फिर ख्याल सा आया हमें
जब साथ मिलकर, करते थे घंटों बातें
आज आवाज सुनने को मन तरसता है,
हंसी सजाने का वादा किया था,
आज क्यों तुमने फिर रूलाया हमें,
यादों के सहारे हम तो काट लेते,
जीवन का हर पल खुशी के साथ,
मेरी आंखों में बसे उन सपनों से,
आज फिर तुमने क्यों उठाया हमें,

Tuesday, September 2, 2008

उम्मीद

आसमान पर साथ तारों का,
अपना सा लगा चांद भी,
चमकी सुनहरी धूप सुबह तो,
सूरज को पाया साथ भी,
छाए काले मेघा तो,
बारिश के साथ झूमे मन,
हरे-हरे पत्तों को देख,
मन चाहे रख लू,
मुट्टी में बंद करके,
अचानक छाने लगा चारों,
तरफ वो गहरा अंधेरा,
फिर न दिखा चांद,
सूरज भी नहीं आया नजर,
बारिश को बूंदों को तरसे,
चहकना भी हुआ बंद,
साथ थी तो वो खाली मुट्ठी,
बंद कर रखी थी ऐसे,
छूट न जाए कुछ मुझ से,
वो लम्हें, जिनको देखा,
मेरी इन आंखों ने,
जब थे इनमें सजे हुए,
सुंदर से सुनहरी सपने,
उम्मीद जगी फिर एक मन में,
फिर चमकेगा वो प्यारा चंदा,
निकलेगा जब सूरज तो,
सुनाई देगी वो मीठी बोली,
फिर बदलेगा मौसम तो,
पेड़ों पर आएंगे पत्ते,
बागों में आएगी बाहर,
बरसेंगे मेघा फिर से,