Saturday, October 4, 2008

नई सुबह


आज नई सुबह के साथ,
बदल रहा है सबकुछ ऐसे.
सुनहरी सूरज की किरणों से,
चमक रहा है जीवन फिर से,
चहके पंछी, महके बगियां.
फूलों पर भी आई रंगत,
मौसम भी लगे कुछ बदला,
बदरा भी छाने लगे घिर के..,
दूर गगन पर काले मेघा.
जैसे झूम झूम कर गाए,
मयूर की चाल भी बदली,
कोयल भी चहकी फिर से..

Monday, September 15, 2008

कोहराम


अचानक मच गई चीख पुकार,
अचानक तेज धमाके के बाद,
चारों तरफ मच गया हाहाकार,
ढूंढ रहा अपनों को कोई,
तो कोई खो चुका था संसार,
चैनलों ने जब आई खबर,
घरों में मच गया कोहराम,
फिर मिला नेताओं को मुद्दा,
आतंक पर लगेगा विराम,
जनता फिर टकटकी लगाए,
देख रही है वो उनका प्रोगाम,
आखिर कब तक बहेगा रक्त,
कब लगेगा बमों पर विराम,
अहमदाबाद ओर बंगलुरू के,
बाद दिल्ली का आया नाम,

नयन


वो झील सी गहरे नयन तेरे,
आज क्यो बोझिल से लगे मुझे,
होती थी हरदम जिनमें मस्ती भरी,
आज क्यों उदास से दिखे मुझे,
हंसता था जिनमें हर पल हमेशा,
आज क्यों रोए-रोए से लगे मुझे,
तालाश रहती थी जिनको हरदम,
आज क्यों खोए-खोए से लगे मुझे,
सजे रहते थे उनमें सपने सलोने,
आज क्यों जगे-जगे लगे मुझे,
निभय रहते थे हर पल वो फिर,
आज क्यों डरे डरे से लगे मुझे,

Monday, September 8, 2008

गुलाब


गुलाब के फूलों से पूछा मैने,
रूप है तेरा कितना सुंदर,
सबको लगता कितना प्यारा,
बच्चे, बुढे सब को तू भाता,
भगवान से भी तेरा नाता,
फिर तू जल्दी क्यों मुरझा जाता,
तेरी लाली चंद दिन को रहती,
बोला फूल तुम क्या जानों,
मैं तो सबको देता मुस्कान,
पर मेरा दर्द न जाने कोई,
मैं खिलता तो महकती बगिया,
सुंदरता मेरी बन जाती अभिशाप,
खिला देख सब आते पास,
पास रखने को तोड़ ले जाता साथ,
टूट कर मैं अपनी डाली से,
कैसे रह पाऊ हमेशा ताजा,
जब खत्म हो जाती मेरी सुंदरता,
महक भी हो जाती खत्म,
लोग फैंक देते है मुझको,
इस लिए मैं हो जाता उदास,

Sunday, September 7, 2008

ख्याल

नाम लिया जब तेरा किसी ने,
लम्हों का फिर ख्याल सा आया हमें
जब साथ मिलकर, करते थे घंटों बातें
आज आवाज सुनने को मन तरसता है,
हंसी सजाने का वादा किया था,
आज क्यों तुमने फिर रूलाया हमें,
यादों के सहारे हम तो काट लेते,
जीवन का हर पल खुशी के साथ,
मेरी आंखों में बसे उन सपनों से,
आज फिर तुमने क्यों उठाया हमें,

Tuesday, September 2, 2008

उम्मीद

आसमान पर साथ तारों का,
अपना सा लगा चांद भी,
चमकी सुनहरी धूप सुबह तो,
सूरज को पाया साथ भी,
छाए काले मेघा तो,
बारिश के साथ झूमे मन,
हरे-हरे पत्तों को देख,
मन चाहे रख लू,
मुट्टी में बंद करके,
अचानक छाने लगा चारों,
तरफ वो गहरा अंधेरा,
फिर न दिखा चांद,
सूरज भी नहीं आया नजर,
बारिश को बूंदों को तरसे,
चहकना भी हुआ बंद,
साथ थी तो वो खाली मुट्ठी,
बंद कर रखी थी ऐसे,
छूट न जाए कुछ मुझ से,
वो लम्हें, जिनको देखा,
मेरी इन आंखों ने,
जब थे इनमें सजे हुए,
सुंदर से सुनहरी सपने,
उम्मीद जगी फिर एक मन में,
फिर चमकेगा वो प्यारा चंदा,
निकलेगा जब सूरज तो,
सुनाई देगी वो मीठी बोली,
फिर बदलेगा मौसम तो,
पेड़ों पर आएंगे पत्ते,
बागों में आएगी बाहर,
बरसेंगे मेघा फिर से,

Thursday, August 28, 2008

चीर हरण





नजर में आई वो सुर्खियां,
लूटी फिर नारी का अस्मत,
फिर सवालों के घेरे में आई,
क्या हुआ, कैसे हुआ चीर हरण,
महाभारत में तो कौरवों की चाल,
तब हारें पांडव,
फिर हुआ था चीरहरण,
आज तो रोजाना दोहराया जाता,
इतिहास भरी सभा का ऐसे,
काले कोट में तो, कभी खाकी वर्दी में,
शब्दों से बार-बार, बेइज्जत होती नारी,
चुप्पी को बना लेती है हथियार,
मुंह खोले तो इज्जत होती तार-तार
लुट कर भी वह बनती गुनाहगार,
माथे पर लगता बदचलन का दाग,

Tuesday, August 26, 2008

नारी


कभी नजर में बनती बेचारी,
दिखती है बस उसकी लाचारी,
खुद को ताकतवर हो मानते,
फिर क्यों नहीं इतना जानते,
बिना न जग में जीवन नारी,
सबकी है वो पालन हारी,
मां बन कर कांटे को चुनती,
पत्नी बन कर तानों को बुनती,
पुरूष बन कर तुम करते मान.
आता नहीं कभी उसका ध्यान,
वक्त के साथ सबकुछ है बदला,
लोगों ने अब इतिहास भी बदला,
पर नहीं बदली तो सोच हमारी,
आज की भी नारी बन गई बेचारी,

टूटा फिर एक तारा


  • आसमान से टूटा फिर एक तारा,

  • मांगी दुआ तो किसी ने दित्कारा,

  • क्या जाने कोई उस तारे का दर्द,

  • कभी रोए खुद पर तो कभी उनपर,

  • जो चमकता देख तो होते है खुश,

  • टूट जाने पर भी मांगते है दुआ,

  • अंजान है उसके बिछड़ने के गम से,

  • बिछड़ कर चला गया कितनी दूर,

  • जो अब वापिस न लौटेगा कभी,

  • फिर चमकने को आसमान में,

Tuesday, August 19, 2008

कुदरत


वो वादियां, वो चारों तरफ की हरियाली,

सुनहरी किरणों की आसमान पर छाई लाली,

कभी आसमान से टपकता पानी,

झरनों की वो सुंदर कहानी,

पंछियों के चहकने का नजारा,

देख लगता सबकुछ कितना प्यारा,

जमकर बरसे मेघा तो मस्ती सी छाई,

सतरंगी पींघ भी आसमान पर नजर आई,

पेड़ों के हरे पत्तों पर टपकती बूंद ऐसे,

नहा कर निकली हो वो पानी से जैसे,

Sunday, August 17, 2008

परछाई


कदम से कदम मिलाते साथ चला ऐसे,

कभी खुद से बड़ा तो कभी छोटा लगा,

एक पल के लिए लगा साथ छोड़ दिया,

दूसरे पल उसे पाया हमसफर की तरह,

अचानक छा गया चारों तरफ अंधेरा,

खुद को अकेला खड़ा पाया उसी जगह,

अब न चल रहे थे वह कदम साथ,

और न ही हुआ पास होने का अहसास,

फिर समझे हम कि परछाई थी हमारी,

जो रोशनी में चल रही हमारे साथ,

अंधेरा आते ही मिटा उसका निशान,

चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर,

मिल जाएंगे फिर वही कदम उसी डगर पर,

Monday, August 11, 2008




Rain Is Sweet
Rain is sweet
It drips and drops
You can dance in the rain
And even drink the rain.
I love rain.
Rain is the water that falls from the clouds
From the beautiful sky at night.
I love the dancing rain that comes
And drips down.
It sparkles in the night of the moon,
On the leaves and on the grass.
Rain is so sweet.
Rain is clear and drips down to earth.
It feels wet and soggy.
It looks like tears from my eyes
Touches my heart and
Makes me happy.
I love the rain.
__._,_.___

Saturday, August 9, 2008

वो पल






छू गया वहीं हवा का झोका मन को,
जो कभी तपती दोपहर में अचानक,
आराम देता था पसीने से लथपथ तन को,

तपती दोपहर में गर्मी से बेहाल,
अपने बस्तों को कंधों पर उठाए,
तेज तो कभी मध्म होती चाल,


आते ही मां के गले से लिपट जाना,
जैसे आंगन की पेड़ की ठंडी छांव,
मस्ती के साथ मां को थोड़ा सा सताना,


रोटी न खाने की थोड़ी सी अनाकनी,
मां का प्यार और दुलार का वह हाथ,
बना देता था हमको दुनिया में सबसे धनी,

जब कालेज पहले दिन था हमकों जाना,

मन में डर कुछ नया करने की उमंग,
फिर लगा जैसे अब बदल गया जमाना,


हाथों में डिग्री आंखों को थी सपनों की तालाश,
चल पड़े हमारे कदम खुद व खुद राहों पर,
जहां आज कल समय नहीं है किसी के पास,

अब तो सब है उन यादों का हिस्सा,

कभी दादी तो कभी नानी की बातों में,
बना रहता था परियों का भी किस्सा,


अब न लौटेगे वो दिन और रातें,
जब घंटे चांदनी रात में बैठ कर,
किया करते थे तारों और चांद से बातें,

छू गया वही हवा का झोका मन को...

Friday, August 8, 2008

फिर क्यों ये अहसास आया

आज न जाने क्यों गुजरा जमाना याद आया,
कोई नहीं है पास फिर क्यों ये अहसास आया।
दिल ने कहा याद न कर बीते हुए लम्हों को,
फिर आंखों में क्यों वो फिर मोती छलक आया।
तुम से दूर निकल आए थे हम तो बहुत,
आज फिर मंजिल में हमारी वहीं मुकाम आया।
गुम हो चले थी वो यादें दुनिया की भीड़ में,
हमें क्यों तुम्हारे पास होने का ख्याल आया।
अब जिंदगी के बची इन चंद सांसों को,
आज जिंदा होने का फिर वहीं अहसास आया।
गुजर गए थे जो कारवां बहुत पहले से,
आज फिर वेवफा हम पर ही इल्जाम आया।
,

Monday, July 28, 2008


----ओस की बूंद सी---
ओस की बूंद होती है बेटी,
मासूम सी प्यारी नन्ही कली,
मन मैं ना हो कोई सवाल,
हर पल रखे सब का ख्याल
फिर भी क्यों नही सब को लगती अपनी,
ओस की बूंद सी .........
माँ ना दे लाड़ उस को,
बाप न रखे सिर पर हाथ,
दादी भी नही देती उस को लोरी,
नानी की कहानी सुनती चोरी चोरी,
ओस की बूंद सी होती है बेटी .........

Sunday, July 27, 2008

मची है हाहाकार


अचानक चीक पुकार, चारों तरफ मचा जब हाहाकार,
बम के धमकों के साथ बुझ गए कितने घरों के चिराग।
मासूम बच्चों के साथ-साथ बाप का सहारा था कोई,
क्या इसी तरह जारी रहेगी देश में आतंक की आग।
न जाने कल किस घर को लील लेगी यह हवा,
कल बंगलुरू तो आज जल उठा अहमदाबाद ।
साप निकल जाने के बाद लकीर पीटने की आदत है पुरानी,
हमेशा से अलापा जा रहा है वहीं सदियों पुराना अलाप।
रोजाना सुबह अखबारों के पहले पन्ने भी भरते है इससे,
कब तक घरों को चिरागों को लीलती रहेगी आतंक की आग।
सुख जाते है मां-बाप के आंखों के आंसू भी रो-रो कर,
पर नहीं थम रही देश में बहती यह नफरत की बुछार।

Monday, July 14, 2008

........जीवन की लहरेँ........
जीवन है एक दरिया, धारा के संग बहते रहते
पल पल रास्ता बदलती लहरोँ में खुद ही हो जाते गुम...
आंखों में नमी होठों पर हँसी को सजाने वाले
मस्ती से चलते जाते दूर भागते उन के गम...
मंजिल की और चलते रहना मुसाफिर का काम
हर मोड़ को देख कर उदास क्यों हो जाते तुम...
छोड़ दिया जिन रास्तो को लहरों ने सदियो पहले
फिर क्यों उन रास्तो पर नजरेँ है हो जाती गुम...
देख किनारे पर बैठे लोगो को हर रोज़
कही फिर यादो में खो न जाना तुम....
पड़े है रस्ते में तेरे पत्थर बहुत
मन कमजोर ना कहीँ कर लेना तुम....
जीवन है एक दरिया.........

Saturday, July 5, 2008

TWO FRIENDS

A story tells that two friends were walking through the desert. During some point of the journey they had an argument, and one friend slapped the other one in the face. The one who got slapped was hurt, but without saying anything, wrote in the sand: "TODAY MY BEST FRIEND SLAPPED ME IN THE FACE."
They kept on walking until they found an oasis, where they decided to take a bath. The one, who had been slapped, got stuck in the mire and started drowning, but the friend saved him. After the friend recovered from the near drowning, he wrote on a stone: "TODAY MY BEST FRIEND SAVED MY LIFE."
The friend who had slapped and saved his best friend asked him, "After I hurt you, you wrote in the sand and now, you write on a stone, why?"
The other friend replied: "When someone hurts us, we should write it down in sand where winds of forgiveness can erase it away. But, when someone does something good for us, we must engrave it in stone where no wind can ever erase it."
LEARN TO WRITE YOUR HURTS IN THE SAND, AND TO CARVE YOUR BENEFITS IN STONE

rone se aur ishq mein

rone se aur ishq meiN be_baak ho gaye
dhoye gaye ham 'eise ki bas paak ho gaye
be_baak = bold,

kehta hai kaun naala-e-bulbul ko be_asar
parde meiN gul ke laakh jigar chaak ho gaye

pooche hai kya wujood-o-adam 'ehl-e-shauq ka
aap apnee aag se KHas-o-KHaashaak ho gaye
KHas-o-Khaashaak = destroyed ]


karne gaye the; usse taGHaaful ka ham gila
kee ek hee nigaah ki bas KHaak ho gaye
taGHaaful = negligence

Friday, June 27, 2008

SAHIR LUDHIANVI

--------GHAM-----
tum ap’naa ranj o Gham ap’nii pareshaanii mujhe de do
tumhe Gham kii qasam is dil kii viiraanii mujhe de do

ye maanaa maiN kisii qaabil nahiiN huuN in nigaahoN meN
buraa kyaa hai agar ye dukh ye hairaanii mujhe de do

maiN dekhuuN to sahii duniyaa tumheN kaise sataatii hai
koii din ke liye apanii nigah’baanii mujhe de do

vo dil jo maiNne maaNgaa thaa magar GhairoN ne paayaa
baRii kaif hai agar usakii pashemaanii mujhe de do



Thursday, June 19, 2008

मिर्जा ग़ालिब ग़ज़ल

---
हजारो ख्वाहिशे ऎसी की हर ख्वाइश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

डरे क्यू न मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यू न दम निकले

निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए है न लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

भरम खुल जाए जालिम तेरे कामत की दराजी का
अगर इस तुर्रा-ऐ-पुरपेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले

मगर लिखवाये कोई उसको ख़त तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रक्खर कलम निकले

हुई इस दौर में.न माँ.न्सुउब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहा.न से जाम-ऐ-जम निकले

हुई जिनसे तवक्को खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी जियादा खस्ता-ऐ-तेग-ऐ-सितम निकले

मुहब्बत में.न नही.न है फर्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते है.न जिस काफिर पे दम निकले

ज़रा कर जोर सीने पर की तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले जो दिल निकले तो दम निकले

खुदा के वास्ते परदा न काबे से उठा जालिम
कही.न ऐसा न हो या.न भी वही काफिर सनम निकले

कहा.न मैखाने का दरवाजा 'घलिब' और कहा.न वाइज़
पर इतना जानते है.न कल वो जाता था के हम निकले

Tuesday, June 17, 2008

ग़ालिब शेयर

शाम होते ही चिरागों को बुझा देता हूँ
यह दिल ही काफ़ी है तेरी याद मैं जलने के लिए


नक्श फरियादी है किसकी शोखी-ऐ-तहरीर का
काघज़ी है पैरहन हर पैकर-ऐ-तस्वीर का


कावे-कावे सख्त_जानी हाय तन्हाई न पूछ
सुबह करना शाम का लाना है जू-ऐ-शीर का

दिल-ऐ-नादाँ तुझे हुआ क्या है ?
आख़िर इस दर्द की दावा क्या है


हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

जब की तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा, 'इ खुदा ! क्या है



हमने कितनी कोशिश की उन्हें मानाने की,
न जाना कहा से सीख ली उन्होंने
यह अदा जिद्द पर उतर जाने की
<

Sunday, June 15, 2008

ख़ूबसूरत

-----ख़ूबसूरत
ख़ूबसूरत हैं वो लब
जो प्यारी बातें करते हैं

ख़ूबसूरत है वो मुस्कराहट
जो दूसरों के चेहरों पर भी मुस्कान सजा दे

ख़ूबसूरत है वो दिल
जो किसी के दर्द को समझे
जो किसी के दर्द में तडपे

ख़ूबसूरत हैं वो जज्बात
जो किसी का एहसास करें

ख़ूबसूरत है वो एहसास
जो किसी के दर्द के में दावा बने

ख़ूबसूरत हैं वो बातें
जो किसी का दिल न दुखाएं

ख़ूबसूरत हैं वो आंखें
जिन में पकेजगी हो
शर्म ओ हया हो

ख़ूबसूरत हैं वो आंसू
जो किसी के दर्द को
महसूस करके बह जाए

ख़ूबसूरत हैं वो हाथ
जो किसी को मुश्किल
वक़त में थम लें

ख़ूबसूरत हैं वो कदम
जो किसी की मदद के लिए
आगे बढें !!!!!

ख़ूबसूरत है वो सोच
जो किसी के लिए अच सोचे

ख़ूबसूरत है वो इन्सान
जिस को खुदा ने ये
खूबसूरती अदा की.

Saturday, June 14, 2008

ae masoom si bholi bhali ladki

-----Ae Masoom Si Bholi Bhali Ladki------
Kisi Se Tum Dil Na Lagana
Kisi Ko Aitbar o Bharosa Ka Rishta
Kabhi Na Dena
Ess Shaher Ke Logoon Ki Fitrat
Mosam Ki Si Hai
Jald Badal Jaty Hain
Dil Toor Jaty Hain
Hai Dil Kanch Ki Manind
Jo Ho Jaye Ager Tukre Tukre
To Judd Nahi Sakta
Ess Kanch Ke Tukre Ko Tum
Abhi Se Sanbhal Ke Rakhna
Na Kisi Per Aitabaar Kerna
Ae Masoom Si Ladki..........