आसमान पर साथ तारों का,
अपना सा लगा चांद भी,
चमकी सुनहरी धूप सुबह तो,
सूरज को पाया साथ भी,
छाए काले मेघा तो,
बारिश के साथ झूमे मन,
हरे-हरे पत्तों को देख,
मन चाहे रख लू,
मुट्टी में बंद करके,
अचानक छाने लगा चारों,
तरफ वो गहरा अंधेरा,
फिर न दिखा चांद,
सूरज भी नहीं आया नजर,
बारिश को बूंदों को तरसे,
चहकना भी हुआ बंद,
साथ थी तो वो खाली मुट्ठी,
बंद कर रखी थी ऐसे,
छूट न जाए कुछ मुझ से,
वो लम्हें, जिनको देखा,
मेरी इन आंखों ने,
जब थे इनमें सजे हुए,
सुंदर से सुनहरी सपने,
उम्मीद जगी फिर एक मन में,
फिर चमकेगा वो प्यारा चंदा,
निकलेगा जब सूरज तो,
सुनाई देगी वो मीठी बोली,
फिर बदलेगा मौसम तो,
पेड़ों पर आएंगे पत्ते,
बागों में आएगी बाहर,
बरसेंगे मेघा फिर से,
Tuesday, September 2, 2008
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1 comment:
अच्छा लिखा है।
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