Monday, September 15, 2008

नयन


वो झील सी गहरे नयन तेरे,
आज क्यो बोझिल से लगे मुझे,
होती थी हरदम जिनमें मस्ती भरी,
आज क्यों उदास से दिखे मुझे,
हंसता था जिनमें हर पल हमेशा,
आज क्यों रोए-रोए से लगे मुझे,
तालाश रहती थी जिनको हरदम,
आज क्यों खोए-खोए से लगे मुझे,
सजे रहते थे उनमें सपने सलोने,
आज क्यों जगे-जगे लगे मुझे,
निभय रहते थे हर पल वो फिर,
आज क्यों डरे डरे से लगे मुझे,

1 comment:

Anonymous said...

मैं बैठा था,
मैं खडा हुआ
मैं चल पड़ा
मैं गिरा
मैं उठा
क्या मैं पागल हूँ
नही, कवि हूँ