Thursday, August 28, 2008

चीर हरण





नजर में आई वो सुर्खियां,
लूटी फिर नारी का अस्मत,
फिर सवालों के घेरे में आई,
क्या हुआ, कैसे हुआ चीर हरण,
महाभारत में तो कौरवों की चाल,
तब हारें पांडव,
फिर हुआ था चीरहरण,
आज तो रोजाना दोहराया जाता,
इतिहास भरी सभा का ऐसे,
काले कोट में तो, कभी खाकी वर्दी में,
शब्दों से बार-बार, बेइज्जत होती नारी,
चुप्पी को बना लेती है हथियार,
मुंह खोले तो इज्जत होती तार-तार
लुट कर भी वह बनती गुनाहगार,
माथे पर लगता बदचलन का दाग,

Tuesday, August 26, 2008

नारी


कभी नजर में बनती बेचारी,
दिखती है बस उसकी लाचारी,
खुद को ताकतवर हो मानते,
फिर क्यों नहीं इतना जानते,
बिना न जग में जीवन नारी,
सबकी है वो पालन हारी,
मां बन कर कांटे को चुनती,
पत्नी बन कर तानों को बुनती,
पुरूष बन कर तुम करते मान.
आता नहीं कभी उसका ध्यान,
वक्त के साथ सबकुछ है बदला,
लोगों ने अब इतिहास भी बदला,
पर नहीं बदली तो सोच हमारी,
आज की भी नारी बन गई बेचारी,

टूटा फिर एक तारा


  • आसमान से टूटा फिर एक तारा,

  • मांगी दुआ तो किसी ने दित्कारा,

  • क्या जाने कोई उस तारे का दर्द,

  • कभी रोए खुद पर तो कभी उनपर,

  • जो चमकता देख तो होते है खुश,

  • टूट जाने पर भी मांगते है दुआ,

  • अंजान है उसके बिछड़ने के गम से,

  • बिछड़ कर चला गया कितनी दूर,

  • जो अब वापिस न लौटेगा कभी,

  • फिर चमकने को आसमान में,

Tuesday, August 19, 2008

कुदरत


वो वादियां, वो चारों तरफ की हरियाली,

सुनहरी किरणों की आसमान पर छाई लाली,

कभी आसमान से टपकता पानी,

झरनों की वो सुंदर कहानी,

पंछियों के चहकने का नजारा,

देख लगता सबकुछ कितना प्यारा,

जमकर बरसे मेघा तो मस्ती सी छाई,

सतरंगी पींघ भी आसमान पर नजर आई,

पेड़ों के हरे पत्तों पर टपकती बूंद ऐसे,

नहा कर निकली हो वो पानी से जैसे,

Sunday, August 17, 2008

परछाई


कदम से कदम मिलाते साथ चला ऐसे,

कभी खुद से बड़ा तो कभी छोटा लगा,

एक पल के लिए लगा साथ छोड़ दिया,

दूसरे पल उसे पाया हमसफर की तरह,

अचानक छा गया चारों तरफ अंधेरा,

खुद को अकेला खड़ा पाया उसी जगह,

अब न चल रहे थे वह कदम साथ,

और न ही हुआ पास होने का अहसास,

फिर समझे हम कि परछाई थी हमारी,

जो रोशनी में चल रही हमारे साथ,

अंधेरा आते ही मिटा उसका निशान,

चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर,

मिल जाएंगे फिर वही कदम उसी डगर पर,

Monday, August 11, 2008




Rain Is Sweet
Rain is sweet
It drips and drops
You can dance in the rain
And even drink the rain.
I love rain.
Rain is the water that falls from the clouds
From the beautiful sky at night.
I love the dancing rain that comes
And drips down.
It sparkles in the night of the moon,
On the leaves and on the grass.
Rain is so sweet.
Rain is clear and drips down to earth.
It feels wet and soggy.
It looks like tears from my eyes
Touches my heart and
Makes me happy.
I love the rain.
__._,_.___

Saturday, August 9, 2008

वो पल






छू गया वहीं हवा का झोका मन को,
जो कभी तपती दोपहर में अचानक,
आराम देता था पसीने से लथपथ तन को,

तपती दोपहर में गर्मी से बेहाल,
अपने बस्तों को कंधों पर उठाए,
तेज तो कभी मध्म होती चाल,


आते ही मां के गले से लिपट जाना,
जैसे आंगन की पेड़ की ठंडी छांव,
मस्ती के साथ मां को थोड़ा सा सताना,


रोटी न खाने की थोड़ी सी अनाकनी,
मां का प्यार और दुलार का वह हाथ,
बना देता था हमको दुनिया में सबसे धनी,

जब कालेज पहले दिन था हमकों जाना,

मन में डर कुछ नया करने की उमंग,
फिर लगा जैसे अब बदल गया जमाना,


हाथों में डिग्री आंखों को थी सपनों की तालाश,
चल पड़े हमारे कदम खुद व खुद राहों पर,
जहां आज कल समय नहीं है किसी के पास,

अब तो सब है उन यादों का हिस्सा,

कभी दादी तो कभी नानी की बातों में,
बना रहता था परियों का भी किस्सा,


अब न लौटेगे वो दिन और रातें,
जब घंटे चांदनी रात में बैठ कर,
किया करते थे तारों और चांद से बातें,

छू गया वही हवा का झोका मन को...

Friday, August 8, 2008

फिर क्यों ये अहसास आया

आज न जाने क्यों गुजरा जमाना याद आया,
कोई नहीं है पास फिर क्यों ये अहसास आया।
दिल ने कहा याद न कर बीते हुए लम्हों को,
फिर आंखों में क्यों वो फिर मोती छलक आया।
तुम से दूर निकल आए थे हम तो बहुत,
आज फिर मंजिल में हमारी वहीं मुकाम आया।
गुम हो चले थी वो यादें दुनिया की भीड़ में,
हमें क्यों तुम्हारे पास होने का ख्याल आया।
अब जिंदगी के बची इन चंद सांसों को,
आज जिंदा होने का फिर वहीं अहसास आया।
गुजर गए थे जो कारवां बहुत पहले से,
आज फिर वेवफा हम पर ही इल्जाम आया।
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