Tuesday, August 26, 2008

नारी


कभी नजर में बनती बेचारी,
दिखती है बस उसकी लाचारी,
खुद को ताकतवर हो मानते,
फिर क्यों नहीं इतना जानते,
बिना न जग में जीवन नारी,
सबकी है वो पालन हारी,
मां बन कर कांटे को चुनती,
पत्नी बन कर तानों को बुनती,
पुरूष बन कर तुम करते मान.
आता नहीं कभी उसका ध्यान,
वक्त के साथ सबकुछ है बदला,
लोगों ने अब इतिहास भी बदला,
पर नहीं बदली तो सोच हमारी,
आज की भी नारी बन गई बेचारी,

1 comment:

Udan Tashtari said...

गहरी रचना...