आज न जाने क्यों गुजरा जमाना याद आया,
कोई नहीं है पास फिर क्यों ये अहसास आया।
दिल ने कहा याद न कर बीते हुए लम्हों को,
फिर आंखों में क्यों वो फिर मोती छलक आया।
तुम से दूर निकल आए थे हम तो बहुत,
आज फिर मंजिल में हमारी वहीं मुकाम आया।
गुम हो चले थी वो यादें दुनिया की भीड़ में,
हमें क्यों तुम्हारे पास होने का ख्याल आया।
अब जिंदगी के बची इन चंद सांसों को,
आज जिंदा होने का फिर वहीं अहसास आया।
गुजर गए थे जो कारवां बहुत पहले से,
आज फिर वेवफा हम पर ही इल्जाम आया।
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Friday, August 8, 2008
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3 comments:
बहुत उम्दा,बधाई.
तुम से दूर निकल आए थे हम तो बहुत,
आज फिर मंजिल में हमारी वहीं मुकाम आया।
ये लाइन ही काफी हैं सब कहने के लिए।
सुंदर...अति उत्तम।।।।
वाह वाह
उम्दा प्रस्तुति.
बहुत खूब.
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