कदम से कदम मिलाते साथ चला ऐसे,
कभी खुद से बड़ा तो कभी छोटा लगा,
एक पल के लिए लगा साथ छोड़ दिया,
दूसरे पल उसे पाया हमसफर की तरह,
अचानक छा गया चारों तरफ अंधेरा,
खुद को अकेला खड़ा पाया उसी जगह,
अब न चल रहे थे वह कदम साथ,
और न ही हुआ पास होने का अहसास,
फिर समझे हम कि परछाई थी हमारी,
जो रोशनी में चल रही हमारे साथ,
अंधेरा आते ही मिटा उसका निशान,
चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर,
मिल जाएंगे फिर वही कदम उसी डगर पर,
3 comments:
Kavita achhi lagi. Badhai.
अंधेरा आते ही मिला उसका निशान ...mila ya mita?
चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर ...mil jayegi mangil.
अंधेरा आते ही मिटा उसका निशान,
चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर,
मिल जाएंगे फिर वही कदम उसी डगर पर,
सुंदर अति सुंदर।
अंधेरा आते ही मिला उसका निशान,
चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर,
मिल जाएंगे फिर वही कदम उसी डगर पर,
बहुत अच्छी प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
www.kuhukakona.blogspot.com
Post a Comment