Sunday, August 17, 2008

परछाई


कदम से कदम मिलाते साथ चला ऐसे,

कभी खुद से बड़ा तो कभी छोटा लगा,

एक पल के लिए लगा साथ छोड़ दिया,

दूसरे पल उसे पाया हमसफर की तरह,

अचानक छा गया चारों तरफ अंधेरा,

खुद को अकेला खड़ा पाया उसी जगह,

अब न चल रहे थे वह कदम साथ,

और न ही हुआ पास होने का अहसास,

फिर समझे हम कि परछाई थी हमारी,

जो रोशनी में चल रही हमारे साथ,

अंधेरा आते ही मिटा उसका निशान,

चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर,

मिल जाएंगे फिर वही कदम उसी डगर पर,

3 comments:

रंजन राजन said...

Kavita achhi lagi. Badhai.
अंधेरा आते ही मिला उसका निशान ...mila ya mita?
चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर ...mil jayegi mangil.

Nitish Raj said...

अंधेरा आते ही मिटा उसका निशान,
चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर,
मिल जाएंगे फिर वही कदम उसी डगर पर,

सुंदर अति सुंदर।

राजीव रंजन प्रसाद said...

अंधेरा आते ही मिला उसका निशान,
चल दिए फिर खुद ही अकेले सफर पर,
मिल जाएंगे फिर वही कदम उसी डगर पर,

बहुत अच्छी प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें..


***राजीव रंजन प्रसाद

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